संगठन में ही शक्ति

बचपन में सभी ने एक कहानी अवश्य ही सुनी और पढ़ी होगी । एक लकड़हारा और उसके पांच बच्चों की कहानी में पिता अपने बच्चों को संगठन की शक्ति के बारे में समझाता है वह लकड़ियों के बंडल का उदाहरण देकर बताता है कि सारी लकड़ियां एक साथ होने पर उनको तोड़ना कितना मुश्किल है । इसी तरह तुम लोग एक साथ रहोगे तो कोई विपत्ति तुम्हें परेशान नहीं कर पाएगी । एक दूसरे की मदद से तुम लोग किसी भी संकट का सामना कर पाओगे । लेकिन अफसोस अधिकांश लोगों ने इस शिक्षा का अनुसरण या अनुपालन नहीं किया और जीवन को संकटों से भर लिया ।

वहीं जिन लोगों ने संगठित होकर कार्य किए वो सभी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए और असंगठित लोग उनको देखकर कुढ़ते रहे । संगठित और असंगठित लोगों में फर्क को महसूस करने का सबसे आसान उदाहरण है , एक शॉपिंग मॉल ब स्थानीय बाजार । आप खुद महसूस करेंगे कि शॉपिंग मॉल में खरीदारी करते समय आप एक आनंद और सुरक्षा का अनुभव कर रहे थे । वहीं स्थानीय बाजार में खरीदारी करते समय आपका अनुभव कतई आनंददायक और सुरक्षित नहीं था । इसका मतलब हुआ कि हमें संगठित लोगों के साथ रहने में जिस आनंद और सुरक्षा का अनुभव होता है वह असंगठित लोगों के साथ नहीं होता । संगठित व्यक्ति अवसर का निर्माण कर सकता है , वहीं असंगठित व्यक्ति अवसर का इंतजार करता है । रोजगार के लिए युवाओं के दो ही विकल्प होते हैं । नौकरी या व्यवसाय ।

दोनों ही विकल्पों में आज का युवा अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है । नौकरी आसानी से लगती नहीं और व्यवसाय के लिए पैसा नहीं है ।

समाज में स्वाभिमान के साथ आर्थिक सहायता मिल पाना एक टेढ़ी खीर है । आर्थिक जरूरतें ज्यादातर अचानक ही मानव जीवन में प्रकट होकर परेशानी खड़ी कर देती हैं। सबसे बड़ी जरूरत एक युवा को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए जरूरी पूंजी के रूप में प्रकट होती है । इसके आभाव में युवा कुछ समझ ही नहीं पाता कि क्या करूं क्या न करूं । नौकरी मिलती नहीं और पूंजी है नहीं , युवा साथी की प्रताड़ना का दौर शुरू हो जाता है । क्या घर और क्या बाहर ।

बाबा साहब बाला साहब विचार मंच , यह नाम आप लोगों को अटपटा लग सकता है । परंतु यह नाम दो विचारधाराओं का मिलन है , जिनके बिना जीवन में सफलता पाना असम्भव की हद तक मुश्किल हो जाता है । एक है संविधान और दूसरा है स्वाभिमान । हमारे जीवन में भी संविधान और स्वाभिमान का महत्वपूर्ण योगदान है । संविधान के दो स्वरूप हैं । एक ईश्वर का और दूसरा देश का । हमें दोनों का ही पालन करना होता है । जिस संविधान का हम पालन नहीं करते हैं वहीं से दंडित कर दिए जाते हैं । इसी तरह स्वाभिमान के भी दो स्वरूप हैं । एक स्वयं का दूसरा ईश्वर का । स्वयं का स्वाभिमान होता है और ईश्वर का अभिमान । लेकिन हम अभिमान अपना करते हैं और स्वाभिमान ईश्वर को सौंप देते हैं । इस कारण दंड के भागीदार हो जाते हैं । संगठन के नाम में बाबा साहब संविधान और बाला साहब स्वाभिमान के प्रतीक हैं । मंच से जुड़ने पर हम आपको संविधान और स्वाभिमान का एक साथ पालन करना सिखाते हैं । इसलिए बाबा साहब बाला साहब विचार मंच से जुडें और अपने जीवन को सफल बनाने की तरफ पहला कदम बढ़ाएं । जुडें और जोड़ें , इस नियम का पालन करें । अथार्थ स्वयं जुडें और तीन लोगों को जोड़ें । मंच की सदस्यता पूर्णतः निशुल्क है । आप सभी का स्वागत है संगठन की जादुई शक्तिशाली दुनियां में । जय सावधान , जय स्वाभिमान